Bharat Bandh: किसानों ने आखिर आज क्यों किया है भारत बंद, जानें उनकी सारी मांगें
Kisan Andonal को शुरू हुए करीब 90 दिन हो चुके हैं. पंजाब और हरियाणा से आए किसान बीते कई दिनों से अपनी मांगों को मनवाने के लिए दिल्ली को घेरे हुए हैं.आइए हम आपको बताते हैं कि किसानों ने भारत बंद (Bharat Bandh) का आह्वान क्यों किया है और उनकी मांगे क्या हैं...
- NEWS18HINDI
- LAST UPDATED: DECEMBER 8, 2020, 12:42 PM IST
नई दिल्ली. देश भर के किसानों (Kisan Andolan) ने 8 दिसंबर को भारत बंद (Bharat Bandh) का ऐलान किया है. किसान केंद्र सरकार द्वारा इस साल मानसून सत्र में पास किए गए तीन कृषि कानूनों पर नाराज हैं और वह चाहते हैं कि ये कानून रद्द कर दिए जाएं. हालांकि सरकार की ओर से लगभग यह स्पष्ट संदेश दिया जा चुका है कि वह कानून वापस नहीं लेगी बल्कि वह उचित संशोधन को तैयार है.
हालांकि किसान संगठन इस बात पर अडिग हैं कि वे कानून को रद्द करने से कम पर राजी नहीं होंगे. अब तक किसान और सरकार के बीच पांच दौर की वार्ता हो चुकी है और छठे दौर के लिए 9 दिसंबर की तारीख तय है. इससे पहले किसानों के भारत बंद ने भी सरकार को पसोपेश में डाल दिया है.
आइए हम आपको बताते हैं कि किसानों ने भारत बंद का आह्वान क्यों किया है और उनक मांगे क्या हैं
किसानों की मांग है कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस यानी MSP हमेशा लागू रहे.
किसान चाहते हैं कि 21 फसलों को MSP का लाभ मिले. फिलहाल किसानों को सिर्फ गेहूं, धान और कपास पर ही MSP मिलती है.
किसानों की मांग है कि अगर कोई कृषक आत्महत्या कर लेता है तो उसके परिवार को केंद्र सरकार से आर्थिक मदद मिले.
किसान चाहते हैं कि केंद्र द्वारा मानसून सत्र में पारित कराए गए तीनों कानून वापस लिए जाएं.
मांग है कि इस आंदोलन के दौरान जितने भी किसानों पर मामले दर्ज हुए हैं, उन्हें वापस लिया जाए.
क्या है किसानों की शंका?
किसान कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 का विरोध कर रहे हैं.
सितंबर में बनाये गये तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक बड़े सुधार के रूप में पेश किया है और कहा कि इससे बिचौलिये हट जाएंगे एवं किसान देश में कहीं भी अपनी उपज बेच पाएंगे.
किसान समुदाय को आशंका है कि केंद्र सरकार के कृषि संबंधी कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े औद्योगिक घरानों की ‘अनुकंपा’ पर छोड़ दिया जाएगा.
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